AAP Aur Paap

: : : "दिल्ली -आआप की या पाप की" भेड़ की खाल में, भेड़िये। "हम देंगे तीखा सत्य, किन्तु मीठा विष नहीं।" चोर मचाते रहे शोर -ये सारी दुनियां है चोर ! भूल गए एक उँगली दूसरे की ओर करने से 3 अपनी ही ओर होती हैं!! कथित ईमानदार के सारे पाप सामने आएंगे, तो सब जानते थे; काठ की हांड़ी इतना भी नहीं टिक पायेगी, आश्चर्य !!! कहते हैं जो काँच के घरों में रहते हैं, वो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकते! यहाँ दूसरों के घर पत्थर फेंक दिखाते हैं, हमारा कांच अटूट है!! किन्तु जब पत्थर पड़ने लगे, तो रोने लगे!!! -तिलक सं 9911111611, 7531949051.: : "ब्लाग" पर आपका हार्दिक स्वागत है. इस ब्लॉग पर अपनी प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाये भेज सकते हैं, रचनाएँ स्वरचित है इसका सत्यापन कर ई-मेल yugdarpanp@gmail.com पर भेजें, ये तो आपका ही साझा मंच है.धन्यवाद: :

Friday, July 8, 2016

केजरीवाल का रोना

केजरीवाल का रोना 

तिलक राज रेलन 
नौटंकीवाल का चलन हर काम में उल्टा है, इसलिए उसका नारा अकर्मण्यता व अधिकारस्ते, अकर्मण्यता के अधिकार की रक्षा करते हुए समाचारों के शीर्ष पर बने रहने की अद्भुत कला से अपनी नौटंकी चलाने के खिलाड़ी पहले दिल्ली सरकार के अधिकारों का पहाड़ा पढ़ने लगे। जब दिल्ली पूर्ण राज्य न किये जाने के संवैधानिक कारणों से पहाड़ा पूरा न कर पाए तब केंद्र से अधिक अधिकार मांगने का मामला चलाया वो भी न चल सका। केंद्र राज्य टकराव को लेकर उच्चतम न्यायालय गए। 
दिल्ली के नौटंकीवाल को जब केंद्र से टकराव में उच्चतम न्यायालय ने घास नहीं डाली, तो वो इतना गरम हो गए कि पूछो मत। कहने लगे कि कोई मुझे काम ही नहीं करने देना चाहता।  
वह तो उच्चतम न्यायालय का भी अपमान करने वाले थे। यदि उनके शब्दों को नरम न किया गया होता, जब उनसे कहा गया कि वो आवेश में कुछ ऐसा न कहें जिससे न्यायालय की भी अवमानना हो जाये। वो तो यह समझते हैं कि जब वो प्र मं तथा अन्य मंत्रियों का अपमान कर सकते हैं। इतना ही नहीं किसी भी जाति धर्म का यहाँ तक मंदिर गुरुद्वारे ग्रन्थ का अपमान कर सकते हैं। देश की सारी व्यवस्था को मोदी की व्यवस्था बतला कर अपनी अकर्मण्यता को ढका जा सकता है। सम्भवत:, वो स्वयं को सवैंधानिक परम्पराओं मान्यताओं से ऊपर मान बैठे हैं। 
अर्थात अकर्मण्यता से जब कोई कार्य व्यवस्था के कारण स्वत: हो गया तो श्रेय अपना और कार्य स्वत: नहीं होगा तब दोष सदा दूसरों को दिए जाने के अवसर बने रहेंगे। आरोप दूसरों पर मढ़ने के लिए जो मीडिया चटकारे के साथ प्रस्तुत करे वही तो इस नौटंकीवाल की मुख्य शक्ति है, जिससे किसी से भी टकरा सकते हैं। 
असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करने वाले नकारात्मक मीडिया, जो इसे प्रमुखता से प्रस्तुत करे नौटंकीवाल उसके समक्ष बयान बहादुर बन जाते हैं। इसी के चलते कुछ समय सम विषम का नाटक चलाया। उसकी भी एक सीमा कितना चलता ? फिर नया कुछ मिला नहीं तो आरोपों का नाटक चलाया उसी के तहत कुछ दूर केंद्र राज्य टकराव का पहाड़ा चलाया वो भी लेकर उच्चतम न्यायालय गए। वहां भी कुछ मिला नहीं। अब तक जो भी बाधक बना उसे मोदी के दबाव में काम करने का आरोपी बना उछालते रहे। इसे तो कोई नहीं मानेगा कि उच्चतम न्यायालय मोदी के दबाव में काम करता है। 
मोदी प्रधान मंत्री हैं अत सरकारी तंत्र का कोई भी कितना ही प्रमाणिकता से अपना दायित्व निभा रहा हो, आरोपित सरलता से किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय स्वतन्त्र संस्था है, मीडिया भी संभवत उसपर आरोप में नौटंकीवाल का साथ नहीं देगा। फिर भी दिल्ली सरकार का यह आग्रह कि दिल्ली उच्च न्यायालय को पहले यह निर्णय करने के लिए कहा जाए कि क्या केन्द्र और राज्य के बीच के विवाद उसके न्यायक्षेत्र में आते हैं या यह ‘‘केवल’’ उच्चतम न्यायालय के। इस पर सुनवाई करने को लेकर उच्चतम न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। 
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय इस प्राथमिक मुद्दे समेत सभी मुद्दों पर निर्णय कर ले कि क्या विवाद उसके न्यायक्षेत्र में है। कहा उच्च न्यायालय एक ‘‘संवैधानिक अदालत’’ है और उसे इस तरह के संवैधानिक मामलों का निर्णय करने व उन्हें परिभाषित करने की शक्ति है। आप अनुच्छेद 226 के तहत दिल्ली उच्च न्यायालय गए। अब उच्च न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित कर लिया और सभी न्याया को अपना न्यायक्षेत्र निर्धारित करने की शक्ति है। उच्च न्यायालय बड़े अच्छे ढंग से न्यायक्षेत्र का निर्णय कर सकता है कि क्या इसका निर्णय अनुच्छेद 226 के तहत किया जा सकता है या अनुच्छेद 131 के तहत।’’ 
"दिल्ली -आआप की या पाप की" भेड़ की खाल में, ये भेड़िये। 
"हम देंगे तीखा सत्य, किन्तु मीठा विष नहीं।" -तिलक सं 

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